आशा बोली तू कल को देख, वक्त निकले मुठी से जैसे रेत
योजनाओं कल्पनाओं का है जो खेल, भुलावा है तेरे जाने में नहीं देर
क्यूँ हर बात लगी है तुझे सस्ती; सौ दिन जिया मैं तेरी बस्ती
जिस घर कि पहचान है तुझे गिरा दे उसे; जो स्वयं अपेक्षा वा ज्ञान है भुला दे उसे
जो मृत शारीर का अंतिम गान है तू इसी पल गा दे उसे
मिट मिट कर बनेगी तेरी हस्ती; सौ दिन जिया मैं तेरी बस्ती
किसी राह कि चाह नहीं; मुझे किसी वाह कि वाहा नहीं
बस फ़िदा हूँ आती साँसों पे; जीवन जो मिला इन रातो में
जिस दिन ये प्याला भर जायेगा; परवाना ज्योत में रम जायेगा
मदहोश फिरा मैं मेरी मस्ती; सौ दिन जिया मैं तेरी बस्ती
- ध्यान युवन
Beautiful...absoulutely beautiful!!
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